Diya Jethwani

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धारावाहिक..... ये दूरियाँ....भाग 5

मन में आस तो जागी की वैक्सीन लेकर मैं वापस लौट सकतीं हूँ....। लेकिन ऊपरवाले को शायद अभी मेरे ओर इम्तिहान लेने बाकी थे...। 

खबर मिलतें ही मैंने पता लगाया तो मालूम हुआ की इंडिया में चाइना की वैक्सीन sinopharm उपलब्ध ही नहीं थीं....। इसलिए मुझे ये वैक्सीन लगवाने नेपाल जाना पड़ा...। मेरी एक दोस्त और उसकी भी एक दोस्त.... कुल मिलाकर हम छह लोग वैक्सीन के लिए नेपाल गए....। मैं नायरा पर किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहतीं थीं इसलिए उसे छोड़कर गई...। 

वहाँ पर हम छह लड़कियों में से एक लड़की का भाई और उसका पति हमारे रहने के लिए घर की व्यवस्था कर चुके थे...। 
हम से पहले बहुत से लोग वहां से वैक्सीन लगवाकर अपने देश, अपने घर चाइना जा चुके थे....। इसलिए नेपाल पहुंचकर मैंने राहत की सांस ली की बस अब ओर इंतजार नहीं....। अब फाइनली मैं अभि से ओर नायरा अपने पापा से मिलेगी...। लेकिन किस्मत ने अपना चकरा फिर घुमाया ओर हमारे वहां पहुंचते ही इंडिया की मीडिया में ये खबरें उड़ने लगी की इंडियन्स चीन जाने के लिए नेपाल से अवैध वैक्सीन लगवाकर आ रहें हैं...। 

इसलिए उस वक्त हमें वैक्सीन लगाने के लिए रोक दिया गया...। लेकिन हम दो दिन वहीं रुके रहें की खबर ठंडी पड़ते ही हमें वैक्सीन लगा दी जाएगी...। 

लेकिन उसी वक्त कुछ ऐसा हुआ की मुझे वहां से लौटना पड़ा बिना वैक्सीन लगवाए...। 

जो दो शख्स हमारी मदद कर रहे थे... जिन्होंने हमारे रहने ओर खाने पीने का इंतजाम किया था.... उनमें से एक शख्स को कोरोना हो गया...। अगले ही दिन मुझे भी बुखार और चक्कर आने लगे...। दिल में एक डर बैठ गया की कहीं मुझे भी तो कोरोना नहीं हो गया.... आंखों के सामने नायरा का चेहरा घुमने लगा...। 
मन में तरह तरह की बातें उमड़ने लगी......इस अंजान जगह पर अगर मुझे कुछ हो गया तो...। नायरा का क्या होगा... वो अपने पापा से कैसे मिल पाएगी...। 

ये सब सोचते सोचते.... मैं बिना वैक्सीन लिए फ्लाइट से इंडिया वापस लौट आई....। 

पता नहीं क्यूँ पर अब मैंने उम्मीद ही छोड़ दी थीं चाइना वापस लौटने की....। 

उस वक्त के माहौल को देखकर एक डर सा बैठ गया था.... सब तरफ़ से सिर्फ मौत के आंकड़े सामने आ रहें थे...। हालात इतने खराब हो चुकें थे की एक एक दिन की जिंदगी भी बोझ जैसी लग रहीं थीं...। पता नहीं कल का सूरज देख पाएंगे की नहीं...। ये सब विचार सारा दिन दिमाग में चलते रहते थे... कब मैं अभि से मिल पाऊंगी....... कब नायरा को इन तक पहुंचा पाऊंगी.... मैं कब तक इस बिमारी से बच पाऊंगी....। मैं धीरे धीरे डिप्रेशन की शिकार होतीं जा रहीं थीं...। मेरी अब बस एक ही ख्वाहिश रह गई थीं की मैं सिर्फ एक बार चाइना जा सकूँ.... नायरा को इनके पास सही सलामत पहुंचा सकूँ....। 


लेकिन मेरा यह इंतजार खत्म ही नहीं हो रहा था...। उस वक्त तक तो भारत के भी हालात बहुत भंयकर हो गए थे...। मेरे आस पड़ोस में ही हर रोज़ किसी ना किसी को कोरोना होने की खबर मिल रहीं थीं...। मौत का आंकड़ा भारत में भी हर दिन बढ़ता ही जा रहा था...। ये एक ऐसा वक्त था.... जब इंसान घर की चार दिवारों में कैद होकर रह गया था...। वो परिवार के तो पास था पर जिंदगी से दूर....। किसी को खबर नही थीं की कब, कौनसा पल..... हमारा आखिरी पल हो जाए...। 


इंतजार की घड़ियाँ बढ़ते बढ़ते आखिर कार एक अच्छी खबर सुनने को मिली की चाइना ने अपनी बार्डर खोल दी हैं...। ये खबर हैं जून 2022 की...। 
मैंने बिना मौका गंवाएं दिल्ली जाकर वीसा लगवाया....। एक उम्मीद फिर से जगी की अब हम चाइना जा पाएं....। दिल्ली में मैं अंजली से भी मिली....। इतने लंबे समय बाद उससे मिलकर बहुत अच्छा लगा...। नायरा की तो जैसे जान में जान आ गई हो आरु से मिलकर...। मैं और नायरा उनके घर पर ही थे की हमें खबर मिली की हमारा वीसा लग गया हैं...। मैंने उसी वक्त ये खबर अभि को सुनाई....। 
मैं आज भी अभि के वो लब्ज़ नहीं भूल सकतीं..... जब उसने उस वक्त कहा था की :- बस जान....अब ओर इंतजार नहीं... अब ओर देर नहीं.... बहुत लंबा समय हो गया हैं... जल्दी से फ्लाइट लेकर आ जाओ....। तुम दोनों के बिना मैं बहुत अकेला पड़ गया हूँ...। जल्दी चाइना आ जाओ....। 

अभि की बात सुन मेरी भी आंखों से आंसू बहने लगे...। सच्चा प्यार क्या होता हैं... ये आज मुझे अहसास हो रहा था...। 

22 दिसम्बर 2019 से आज जून 2022 तक का वक्त मैंने कैसे निकाला हैं.... ये सिर्फ मैं ही जानती थीं...। 

ऐसा नहीं हैं की मैं यहाँ खुश नहीं थीं.... मेरे ससुराल के लोग हो या मायके... दोस्त हो या पड़ौसी.... हर किसी ने मेरी अपनी तरफ़ से संभाल की.... लेकिन फिर भी अपना घर अपना घर होता हैं...। 

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** इंडिया में रहते रहते..... पास में रहने वाली एक भाभी को बेटी हुई.... जिसका नाम आराध्या रखा गया...। ये नाम सुनते ही मेरी आंखों के सामने आरु का चेहरा घुमने लगा....। उस नाम से मेरी और अंजली की साथ बिताई यादें ताजा हो गई थीं....। मेरा जब भी मूड थोड़ा अपसेट होता था....मैं उसके पास चलीं जाती थीं...। मैं और नायरा भी उस छोटी आरु से बहुत ज्यादा अटेच हो गए थे...। 



** नायरा ने बचपन से अपना ज्यादातर वक्त चाइना मे आरु के साथ ही बिताया था....। वहां स्कूल में भी वो लड़कियों से ही ज्यादा घुलती मिलतीं थीं...। 
धैर्य.... शायद पहला ऐसा लड़का था जिसके साथ नायरा खेली हो....। 
ससुराल में पास वाले घर में धैर्य का जन्म हुआ था...। नायरा को धैर्य बहुत पसंद था...। वो उसको बहुत प्यार करतीं थीं...। उसके छोटे छोटे हाथ पैर देखकर कहती :- मम्मा.... इसके हाथ कितने छोटे से हैं.... उंगली तो देखो.... इत्ती सी हैं....। 



** मेरे ससुराल में नायरा सबसे छोटी बच्ची थीं...। उसे ससुराल में सब बहुत प्यार करते थे....। सबकी चहेती थीं नायरा...। मेरी बड़ी ननद मनीषा और छोटी मीनू.... हमेशा नायरा से मिलना चाहतीं थीं.... लेकिन चाइना मे रहने की वजह से उनसे कभी ठीक से मुलाकात हो नहीं पाई थीं....। इंडिया में रहते वक्त उनसे मिलना हुआ....। 
मेरी बड़ी ननद परिवार के साथ घर आई...। दोनों ननदो के साथ बिताया वक्त मैं कभी नहीं भूल सकतीं...। मस्ती करना... झूला झूलना.... मूवीज देखना... पार्टी करना.... देर रात को घंटों बैठकर बातें करना...। 


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क्या अब मैं अपने घर लौट पाऊंगी....?! 
या फिर से कुछ टर्निंग पाइंट आएगा..?? 
जानते हैं अगले भाग में..। 


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